राजस्थान का एक कस्बा है सिवाना। यह धार्मिक नगरी होने के साथ साथ पर्वतीय इलाका है।
उसी कस्बे में मनोहर नाम का एक विद्वान व्यक्ति रहता था। मनोहर कोई एलएलबी, बीए, एमए, एमबीए नहीं था, उसने जीवनं की पाठशाला से अनुभव की वर्णमाला सीखी थी। मनोहर की उम्र 55 वर्ष थी और उसका एक 21 वर्षीय बेटा था विकास।
विकास को भगवान का एक गिफ्ट मिला हुआ था- आवाज।
उसकी आवाज इतनी मधुर थी कि पिछले दो वर्षों में ही उसने अपने आसपास के लोगो के दिलों में गहरी जगह बना ली थी। विकास की गायिकी का नशा दिन ब दिन लोगों के दिलों पर छाता जा रहा था लेकिन इसके साथ एक और चीज बढ रही थी वह था विकास का घमंड।
विकास जिस तेजी से सफलता पर पहुंचा उसकी दुगुनी तेजी से नीचे धरातल पर आ गया। विकास के रवैये ने अपने साथ काम करने वाले लोगों का भरोसा खो दिया था।
अचानक से विफलता ने विकास को काफी हद तक निराश कर दिया था। विकास अपनी नाकामियों की वजह नहीं ढूंढ पा रहा था। उसे यह पता नहीं चल रहा था कि आखिर क्या गलत हो रहा है।
विकास की इस उदासी को उसके पिता मनोहर ने समझा।
एक दिन मनोहर अपने बेटे विकास को एक पहाड़ के पास ले गया और विकास को पहाड़ पर अपने साथ चढने के लिए कहा।
मनोहर और विकास दोनो पिता पुत्र पहाड़ पर चढने लगे। पहाड़ पर चढाई करने के लिए विकास ने अपने आप को झुका लिया और तेजी से ऊपर की ओर चढने लगा।
आधी दूरी तय करने के बाद मनोहर ने अपने बेटे विकास को रोका और कहा कि 'आधी दूरी तो तुम झुक कर चले हो, अब अगली आधी दूरी तक तुम अपने शरीर को तान कर चलो। झुकना बिल्कुल मत।'
विकास ने अपने पिता के कहे अनुसार चढना शुरू किया लेकिन उसे शरीर तान कर चलने में परेशानी होने लगी।
दो तीन कदम बढाते ही वह पीछे की ओर गिरने लगा।
मनोहर ने विकास का हाथ पकड़ा और गिरने से बचा लिया।
विकास ने अपने पिता से कहा कि 'शरीर को तान कर वह ऊपर की ओर नहीं चढ पाएगा, झुक कर ही इस पहाड़ की चढाई संभव है। '
इतना कहते ही मनोहर ने अपने बेटे विकास का हाथ पकड़ा और कहा कि 'विकास! जीवन ऐसा ही है।'
अगर तुम्हें सफलता के पहाड़ पर चढना है तो झुक कर चढना होगा न कि तन कर। यह तुम्हारे लिए सीख है।
तुम सोचते हो न कि मैं क्यों इतनी जल्दी असफल हो गया? इसका कारण यही है कि तुम में अहंकार आ गया था। तुम इसे अपनी व्यक्तिगत कामयाबी मानकर मन ही मन तन कर खड़े थे जबकि तुम्हें झुकना था। सफलता के पहाड़ पर चढते समय भी झुक कर चढना पड़ता है। झुकने का मतलब अपने आपको सौम्य, अनुशासित और कृतज्ञ बनाए रखना।
किसी भी व्यक्ति की सफलता उसकी व्यक्तिगत सफलता नहीं होती, उसके कुछ सहयोगी कारक होते है। तुम्हें उन लोगों के प्रति हमेंशा कृतज्ञ और सरल रहना होगा जिनकी बदौलत तुम सफलता के शिखर की ओर बढ रहे हो।
याद रहे जो झुक कर चल रहा है इसका अर्थ है कि वह ऊपर चढ रहा है और जो तन कर चल रहा है इसका मतलब कि वह जल्दी ही नीचे गिरने वाला है।
विकास अपने पिता की बात समझ गया था, उसे अपनी नाकामयाबी की असली वजह पता चल गई थी।
दोस्तों यह सीख हम सबके लिए भी है। हम अपनी कामयाबी से इतने प्रसन्न हो जाते है कि हम इसे अपने व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम मानते है जबकि किसी भी व्यक्ति की सफलता में उसके कुछ सहयोगी भी होते है। मान लीजिए कोई गायक है और वह प्रसिद्ध है तो उस गायक के साथ उन तबला वादकों, ढोलक वादकों, गीतकारों, श्रोताओं आदि का सहयोग रहा है तभी वह इतना आगे बढ सका है। कोई भी बाॅलीवुड एक्टर बड़ा तब होता है जब उसकी फिल्म हिट हो, लेकिन फिल्म हिट कौन करवाता है स्क्रिप्ट राईटर, निर्देशक, प्रोड्युसर, गीतकार, स्पाॅट ब्वाॅय, संगीतज्ञ और सबसे बड़े दर्शक आदि आदि।
एक सामान्य सी कहावत भी है कि वह पेड़ अधिक झुका होता है जिस पर अधिक फल होते है।
इसलिए हम आगे बढना चाहते है या फिर आगे बढ रहे है तो सबसे पहले हमें अपने आस पास के लोगों और चीजों के प्रति कृतज्ञ (किसी का उपकार मानना और जताना) हो ना पड़ेगा। मैं तो अपने पेन, कम्प्यूटर, खिड़की, कागज, शरीर तक को कृतज्ञता दर्शाता हूं।
तो दोस्तों कैसी लगी ये Story!!! है ना वास्तव में Inspirational और Helpful! Inspirational Articles, Poems and Quotes के साथ साथ ऐसी ही Inspirational Stories मैं आपके लिए लाता रहूंगा। बस अपने Valuable Comments के माध्यम से मुझे जरूर बताईएगा कि यह पोस्ट आपकों कैसी लगी? मुझे इंतजार रहेगा........
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Wow!! Great inspirational story and lesson. Thanks for sharing Ram.
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