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Wednesday 13 May 2015

कैसे प्राप्त करे लक्ष्य? How to achieve goal in hindi

Motivational hindi Article




Inspirational Article in hindi
आज जिसके बारे में यह लेख है उसकी विषयवस्तु है- लक्ष्य प्राप्ति की मौलिकता and कैसे प्राप्त करे लक्ष्य? बहुत से सफल व्यक्तियों को देखने और उनकी लक्ष्य प्राप्ति की प्रक्रिया समझने के बाद इस विषय पर लिखने का मेरा मन हुआ।
अक्सर यह देखा जाता है कि हम सभी किसी न किसी सफल व्यक्ति को देखकर ही उसके जैसा बनने के लिए अपने लक्ष्य निर्धारित करते है। और यह ठीक भी है। ऐसा करने से हमारे लक्ष्य थोड़े से मार्गदर्शन की प्राप्ति भी कर लेते है। उन सफल व्यक्तियों की जीवनी हमे लक्ष्य प्राप्ति के लिए निर्देशित करती है। लेकिन कई बार यह सामने आया कि सफल होने की चाह रखने वाले किसी भी व्यक्ति ने जिस किसी कों भी अपना आदर्श बनाया , उसके जैसा बनने के लिए अंदरूनी अनुसरण करने के बजाय उसका बाहरी अनुसरण किया। जिसका एक ही नतीजा निकला- असफलता। और साथ में उपहार के तौर पर कुंठा, निराशा और भटकाव भरा जीवन।
इस बात को समझाने का सबसे आसान तरीका है मेरे पास।
कोई व्यक्ति अपने जीवन में कुछ बनना चाहता है तो यकीनन वो उसी क्षेत्र के सफलतम लोगों को अपना आदर्श मानेगा। और उन सफलतम लोगों में से भी वो अपने आदर्श उन लोगों को चुनना पसंद करेगा जो जीवित हो और जिनका जीवन उनके जीवन से थोड़ी भी साम्यता रखता हो और जो संघर्षो से आगे बढे हो ना कि चांदी के चम्मच के साथ जन्मे हो।
उदाहरण के तौर पर आप सफल राजनेता बनना चाहते है तो आप अपना आदर्श नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी, प्रणव मुखर्जी जैसे लोगों को बनाएंगे क्योकि यह सफल राजनेता अपनी जिंदगी में गिर गिर कर आगे बढें है। ठीक उसी प्रकार आप कवि बनना चाहते है तो कुमार विश्वास, शैलेष लोढ़ा, गोपाल दास नीरज जैसे कवियों को आदर्श मानेंगे क्योकि यह कवि मंच की दुनिया के सबसे लोकप्रिय और सफलतम कवि है। आप लेखक बनना चाहेंगे तो चेतन भगत, अमीश त्रिपाठी जैसों को अपना आदर्श बनाएंगे क्योकि इनकी पुस्तके लाखों की संख्या में बिकती है। आप व्यापारी बनना चाहते है तों आप नारायण मूर्ति, धीरूभाई अंबानी जैसों को अपने आदर्श के रूप में स्वीकार करोगे। आप खेल में जाना चाहते हो तो सचिन तेंदुलकर, ध्यानचंद, विश्वनाथ आनंद जैसी महान शख्सियतों को अपना आदर्श बनाना पसंद करोगे। इसी प्रकार अभिनय के क्षेत्र में शाहरूख, अमिताभ बच्चन, चित्रकारी में हुसैन, राजा रवि वर्मा आदि अन्य क्षेत्रों में अलग अलग सफलतम लोग आपके आदर्श होंगे।
यहा तक तो ठीक है। ऐसा होना चाहिए। यही रणनीति ठीक है जो आपकी अंदर की आग को एक दिशा देती रहेगी और निरतंर आपको यह संदेश देगी कि “यह (आपके आदर्श) कर सकते है तो तुम क्यों नहीं कर सकते?“
लेकिन असल दिक्कत की शुरूआत यहाँ से होती है जो आपकी रणनीति को सफल नहीं होने देती। आपके सपनों को आपसे दूर कर देती है।
इन सबके जीवन की आप कहानिया पढेंगे तो आपकों सिर्फ एक चीज सब में समान मिलेगी - अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण।
दिक्कत यह होती है कि हम इनके जीवन चरित्र से मौलिक संदेश उठाने की बजाय भौतिक संदेश उठाने लग जाते है। उपर वाले उदाहरण को ही इसी बात के संदर्भ मंे फिर से समझते है।
मौलिक संदेश उठाने वाले व्यक्ति की सफलता की संभावना लगभग 90 प्रतिशत से भी उपर पहुंच जाती है पर भौतिक संदेश उठाने वाले वही के वही रह जाते है। मौलिक संदेश प्राप्त करने वाला कुछ महत्वपूण संदेश प्राप्त करेगा जो उसके सपनों को सही दिशा में ले जाएंगे।
भौतिक संदेश उठाने वाला क्या करेगा? इसकी बानगी देखिए।
जो व्यक्ति नरेंद्र मोदी जैसा बनना चाहेगा वो उनके जैसे कपड़े पहनने लगेगा, उनके जैसे बोलने की कोशिश करेगा, और लोगों के बीच में अच्छा वक्ता बनने की धुन में लगा रहेगा। यह नहीं सोचेगा कि नरेंद्र मोदी इन सब बातों की वजह से सफल नहीं है, नरेंद्र मोदी की सफलता का राज है विनम्रता, कर्तव्य परायणता, कर्मठता और छोट से छोटे काम को करने में भी आगे रहने की प्रवृति।

वही व्यक्ति अटल बिहारी जी जैसा बनना चाहेगा तो उनकी तरह कविता लिख कर राजनीति में प्रवेश करने की कोशिश करेगा, ऐसे भी मिल जाएंगे जो शादी नहीं करेगे या फिर पत्रकारित से राजनीति में प्रवेश की सोचेंगे। पर यह उनका राज नहीं था उनकी सफलता का राज था उदारता, जमीन से जुड़ा होना, जनता के बीच रहना।

ऐसे ही जो कुमार विश्वास, शैलेष लोढ़ा, चेतन भगत, अमीश त्रिपाठी की तरह बनना चाहेगा तो वो उनकी तरह सूटेड, बूटेड, उनकी ही तरह दिखने की कोशिश करेगा, उनकी ही तरह अपनी नौकरी भी छोड़ देगा। कुमार विश्वास की तरह बनने वालों कईयो ने उनके नाम की तरह अपने उपनाम “कुमार” को आगे लगाना शुरू कर दिया, उनकी ही तरह पीले पन्नों पर लिखना शुरू किया, और उनकी ही तरह सजने संवरने लगे। लेकिन मैं विश्वास पूर्वक कहता हु कि यह इनकी सफलता का राज नहीं है। कवि बना नहीं जाता, कवि होता है। इसके लिए सतत और गहन अध्ययन, विराट शब्दकोश, संवेदना, शिल्प अत्यधिक आवश्यक है। और यह सारी विशेषताए इन कवियों और लेखकों के कौशल में है।

ऐसे हीे सचिन तेदुंलकर ने भी अपने आप को सफल बनाने में कई पापड़ बेले। वे विश्वकप 1987 में बाॅल ब्वाय बने, जब वो प्रेक्टिस के लिए जाते थे तों किट को कंधे पर उठाये रखने के कारण उन्हे भयंकर दर्द होता था फिर भी स्टेडियम पहुंच कर वे अभ्यास शुरू कर देते। उसी प्रकार अमिताभ बच्चन को भी उनकी आवाज और कद के कारण कई बार रिजेक्ट किया गया। लेकिन मेहनत और लगन ने उन्हे महानायक बना दिया। अगर वे उस समय राजेश खन्ना की तरह लेट आना और नखरे करना को अपना आवश्यक अंग बना लेते तो वो आज तक बाॅलीवुड में इतने सफल नहीं रह पाते। ऐसे कई उदाहरण है और यह भी सत्य है कि कई युवा सफल लोगों की सफलता को देखतेे है। सफलता की सुंदर इमारत को देखते है लेकिन यह जानने की कभी कोशिश नहीं करते कि इस इमारत की नींव कितनी मेहनत से बनायी गयी थी।
सार यही है कि अपने आदर्श की आज की जीवन शैली को मत देखिए। विशेषकर उनकी उस जीवनशैली को पता लगाने की कोशिश कीजिए जो उनके संघर्ष के दिनों में थी। अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण और मेहनत यह दो ऐसी प्राथमिकताए है जो हर एक व्यक्ति को चाहिए। अगर कोई इन दो साधनों से बचकर सफलता प्राप्त कर भी लेता है तो भी सफलता के उस शिखर पर ठहरने के लिए उसे इन्ही दो प्राथमिकताओं को अमल में देर सवेर लाना ही होगा।

अपने आपकों दूसरा नरेंद्र मोदी, दूसरा चेतन भगत, दूसरा नारायण मूर्ति कहलाने की बजाया पहला व्यक्ति बनाओ। आपमें जो मौलिकता होगी वही दूसरों को नजर आएगी। (मौलिकता का अर्थ- जो स्वभाविक रूप से हो, नयापन) आप हूबहू अपने आदर्श की तरह दिखने और करने लग गए तो माफ कीजिए कोई आपकों सफल नहीं बल्कि उनका अनुयायी और समर्थक ही मानेगा। लकीर खीचने के लिए आवश्यक है सपाट जगह हो, जहा पहले से ही लकीरे खीची है वहा आप नजरअंदाज भी हो सकते है। जिस क्षेत्र में भी बढ़ना चाहते हो अपनी मौलिकताओं के साथ आगे बढो। याद रखे यह संसार एक रंगमंच है और आपका रोल सिवाय आपके कोई भी शिद्दत से नहीं निभा सकता। दूसरों के जीवन से मात्र एक सीख लो -लगन। लगन हुई तो बाकी गुण अपने आप आएंगे। आपकी जीवनी दूसरें लोग तभी पढेंगे जब आपकी कहानी में कुछ नया पन हो।


               Written by-   राम लखारा
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