Self Improvement article in Hindi
मूलतः मनुष्य के जीवन के वातावरण को दो भागों में बाटा जा सकता है, प्रथम उसका आंतरिक जीवन,दूसरा उसका बाहरी जीवन। यह दोनों मिलकर सांसारिक जीवन बImprovement नाते है। आंतरिक जीवन में आपका परिवार (family), सेहत(health), रिश्ते-नाते (relation) और स्वविकास (self development) यह सब आते है। तथा बाहरी जीवन में आपका पेशा, पैसा, भौतिक सुख सुविधाए आती है।
जब Business में कोई वस्तु तराजू पर तौलकर दी जाती है तो ग्राहक और व्यापारी दोनों की संतुष्टि के लिए आवश्यक है कि तराजू पर तुली हुई वस्तु दूसरी ओर के बाट के बराबर हो। उसी प्रकार जीवन भी एक तराजू है। जिसके एक ओर आंतरिक और दूसरी ओर बाहरी जीवन रहता है। जब तक इन दोनों में सामंजस्य Balance रहता है तब तक एक जीवन को दूसरे जीवन से ना तो कोई शिकायत होगी और ना ही किसी प्रकार की घृणा।
दोनों पलड़ों में फर्क आना कब शुरू होता है? जब हम इन दोनो में से किसी एक को अधिक महत्व देने लग जाते है। दोनों पलड़ो में अगर एक पलड़ा अव्यवस्थित होता है तो वो दूसरे को भी अव्यवस्थित करेगा।
जब हम आंतरिक जीवन को आवश्यकता से अधिक महत्व देते है तब हम हमारे बच्चे, पत्नी, माता पिता, भाई बहिन आदि रिश्तों में अधिक खोने लग जाते है। स्वजनों के प्रति मानवीय प्रेम इंसान की सहज प्रवृति है। पारिवारिक सदस्यों के प्रति हमारे प्रेम से भी अधिक महत्व रखता है उनके प्रति कर्तव्य भावना। एक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने बीवी, बच्चों, माता पिता को प्यार करने के साथ साथ उनके जीवन यापन का पूर्ण बंदोबस्त करे। उनके पेट भरण और दैनदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसे कमाना पड़ेगा। उसी प्रकार सेहत के लिए ज्यादा समय देकर अगर हम अपनी आजीविका को कम समय दे पा रहे है तो यह भी किसी तरह से उचित नहीं है। How to win hearts in hindi click here
फिर भी देखने में यह आता है कि कम लोग ऐसे होते है जो आंतरिक जीवन के पलड़े को अव्यवस्थित करते है।
सबसे ज्यादा नुकसान आज के परिवेश में बाहरी जीवन को अधिक महत्व देने से हो रहा है। सांसारिक विलासिताए और प्रदर्शन इतना अधिक हो गया है कि मनुष्य खुद को गिरवी तक रखने को उद्यत है। अधिक धन Money और सुविधा facility की जुगत में हम अपने परिवार, रिश्तो नातो, सेहत तक को ignore करना शुरू कर देते है। एक बात हमें भली प्रकार समझ लेनी चाहिए कि मनुष्य जीने के लिए पैसे कमाता है, ना कि पैसे कमाने के लिए जीता है।
जीने के लिए पैसा कमाने तक तो ठीक है पर जब बात पैसा कमाने के लिए जीने पर आ जाती है तब पूरे जीवन का सामंजस्य डांवाडोल हो जाता है। आजीवन इसी धुन में धन कमाते कमाते हम काफी दूर निकल जाते है और जब पीछे मुड़कर देखते है तो दूर दूर तक कोई नजर नहीं आता है, ना ही पत्नी, ना बच्चे और ना ही परिवार, ना सेहत। इस असामंजस्य के जितने भी दुष्परिणाम होते है वो सारे के सारे आज के संसार में देखने को मिल जाएंगे। हमे चाहिए कि हम अपने प्रयासों को अति तक न ले जाए, आजीविका उपार्जन के साथ साथ परिवार, और सेहत का विशेष ख्याल रखें। आंतरिक और बाहरी जीवन के साथ अति, दोनों ही मनुष्य और उस पर आश्रितों के लिए हितकर नहीं है। दोनों जीवन को पर्याप्त समय दे ताकि ना तो हमारे स्वजनों को हमारे बिना जीने की आदत पड़ जाए और ना ही हमारे स्वजन हमें असफल व्यक्ति समझने लगे।
Written By- राम लखारा
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